ख़ुशी दुबे को इंसाफ़ दिलाने के लिए ब्राम्हण संगठन करेंगे पद यात्रा-दुर्गेश मणि त्रिपाठी
कानपुर - उत्तर प्रदेश के कानपुर में पिछले साल चर्चित बिकरू कांड के बाद पुलिस मुठभेड़ में मारे गये आरोपी की पत्नी समेत चार महिलाओं को जेल में डाले जाने का विरोध करते हुये ब्राम्हण संगठन लामबंद हो रहे है मैं ब्राम्हण हूँ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुर्गेश मणि त्रिपाठी ने कहा कि प्रदेश सरकार को प्रतिशोध की राजनीति से बाज आना चाहिये और निर्दोष महिलाओं और एक मासूम को रिहा करने का आदेश देना चाहिये।
श्री त्रिपाठी ने शुक्रवार को अशोक नगर स्थित कानपुर जर्नलिस्ट क्लब के हिंदी पत्रकार भवन में प्रेस वार्ता कर पत्रकारों से कहा कि नफरत, दुर्भावना और प्रतिशोध की राजनीति से उत्तर प्रदेश की सरकार चल रही है। बिकरू कांड में निर्दोष खुशी दुबे समेत चार महिलाओं को विधि विरुद्ध कार्रवाई करके 10 महीने से जेल में रखना इसका प्रमाण है। बिकरू कांड को लेकर उन्होने कहा कि इस जघन्य कांड के बाद कई एनकाउंटर हुए थे। उसमें अमर दुबे का एनकाउंटर भी हुआ था। पुलिस ने मामले में तीन दिन पहले अमर दुबे से ब्याही गई खुशी दुबे को गिरफ्तार किया। जब मामले ने तूल पकड़ा तो तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार पी ने बयान दिया कि खुशी निर्दोष है और उसको छोड़ दिया जाएगा । इसके बाद भी खुशी दुबे आज 10 महीने से जेल में यातनाएं झेल रही है। उसे खून की उल्टियां हो रही हैं। दो बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो चुकी है।
गरीब माता-पिता उसकी रिहाई के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। वह खुशी की हत्या का अंदेशा भी जता चुके हैं। जिस खुशी दुबे को खुद तत्कालीन एसएसपी ने निर्दोष बताया था उस पर हत्या से लेकर विस्फोटक अधिनियम तक का मुकदमा दर्ज कर दिया गया। उस पर 17 धाराएं लगा डालीं। खुशी की तरह तीन अन्य महिलाएं और एक ढाई साल का बच्चा भी है। अमर दुबे की मां क्षमा दुबे पिछले 10 महीनों से जेल में है, उसका क्या अपराध है पुलिस बताने को तैयार नहीं। प्रदेश सरकार और प्रशासन भी कुछ बोल नहीं रहा। एक अन्य अभियुक्त हीरू दुबे की मां शांति दुबे को भी जेल में रखा गया है। शांति दुबे की गलती क्या, गुनाह क्या, अपराध क्या, यह न तो प्रदेश सरकार बताने को तैयार है और न ही पुलिस। विकास दुबे के घर काम करने वाली नौकरानी रेखा अग्निहोत्री का है। घटना के बाद उसे पुलिस ने उसकी 7 साल की बच्ची और ढाई साल के बच्चे के साथ जेल भेजा था। कोर्ट के हस्तक्षेप पर बच्ची तो मौसी के पास भेज दी गई लेकिन निर्दोष बेटा मां के साथ 10 महीने से जेल में है।
उन्होने मुकदमे की पहली एफआईआर की कॉपी पेश करते हुए कहा कि इन चारों महिलाओं का नाम केस में नहीं था । सरकार बताये कि प्रदेश में कानून और संविधान नाम की कोई चीज शेष है या नहीं। उन्हें बताना चाहूंगा कि जब तक मैं ब्राम्हण हूँ महासभा का अस्तित्व है तब तक हम उत्तर प्रदेश को ब्राम्हणों का यातना गृह नहीं बनने देंगे।
दुर्गेश मणि ने इस सिलसिले में महासभा के आह्वान पर प्रदेश और देश के कोने कोने से राष्ट्रपति एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय को पत्र लिखकर निर्दोष ब्राम्हण महिलाओं की रिहाई की मांग की जा रही है तथा जिन पुलिस कर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों ने इन महिलाओं के साथ अत्याचार किया उनकी जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से कराने की मांग की जा रही है। वही ब्राम्हण महिलाओं की रक्षा के लिए महासभा के अध्यक्ष दुर्गेश मणि 22 जून को दर्जनों ब्राम्हण संगठनों के समर्थन से कानपुर से शुक्लागंज मार्ग से होते हुए लखनऊ राजभवन तक पैदल यात्रा कर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को ज्ञापन सौपेंगे, उन्होने कहा वह भी एक महिला हैं और वह महिलाओं की पीड़ा समझेंगी। प्रदेश में कानून और संविधान की वह रक्षक हैं। पूरा भरोसा है कि वह चारों निर्दोष ब्राम्हण महिलाओं को न्याय दिलाएंगी और उन्हें शीघ्र जेल से मुक्त कराएंगी।
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